दो शे’र
1.
मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर
ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है.
2.
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
दो शे’र
1.
मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर
ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है.
2.
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा