जब गर्दिशों में जाम थे
कितने हसीं अय्याम थे

हम ही न थे रुसवा फ़क़त
वो आप भी बदनाम थे

कहते हैं कुछ अर्सा हुआ
क़ाबे में भी असनाम थे

अंजाम की क्या सोचते
ना-वाक़िफ़-ए- अंजाम थे

अहद-ए-जवानी में ‘अदम’
सब लोग गुलअन्दां थे

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