न आने दिया राह पर रहबरों ने
किए लाख मंज़िल ने हमको इशारे

हम आग़ोशे-तूफ़ाँ तो होना है एक दिन
सम्भल कर चलें क्यों किनारे-किनारे

यह इन्साँ की बेचारगी हाय तौबा
दुआओं के बाक़ी हैं अब तक सहारे

यह इक शोब्दा है, कि है मौज दिल की?
किसी को डुबोए किसी को उभारे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *