रुबाई

तूफ़ाँ के तलातुम में किनारा क्या है,
गरदा में तिनके का सहारा क्या है.
सोचा भी ऐ ज़ीस्त पे मरने वाले,
मिटती हुई मौजों का इशारा क्या है?

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