लहू का टीका
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
तिरे नामूस पर सब कुछ लुटा देने का वक़्त आया
वह ख़ित्ता देवताओं की जहां आरामगाहें थीं
जहां बेदाग़ नक़्शे-पाए-इंसानी से राहें थीं
जहां दुनिया की चीख़ें थीं, न आंसू थे न आहें थीं
उसी को जंग का मैदां बना देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
रुपहली बर्फ पर है सुर्ख़ ख़ूं की आज इक धारी
सहर की नर्म किरनों ने यहां दोशीज़गी खोई
हुई आलूदा यह मासूम दुनिया अप्सराओं की
अब इन नापाक धब्बों को मिटा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
गिराकर हर निज़ाए-दर्मियां की चारदीवारी
सियासत की धड़ेबाज़ी, ज़बां की तफ़रिक़ाकारी
मिटा कर सूबा-ओ-ईमानो-मिल्लत की हदें सारी
हिमाला पर नयी सरहद बना देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
हर इक आंसू का शोला जज़्ब करके दिल के ख़िर्मन में
हर इक फ़रियाद की लै ढाल कर इक अज़्मे-आहन में
हर इक नारे की बिजली करके आसूदा निशेमन में
हर इक बिजली को दुश्मन पर गिरा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
हर इक बाज़ारो-कू को रज़्मगह शायद बनाना हो
हर इक दीवारो-दर पर मोर्चा शायद बनाना हो
ख़ुद अपनी किश्त को आतिशकदा शायद बनाना हो
हर इक चप्पे पे आहूती चढ़ा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
यह अहले-ख़ाना की ग़ासिब लुटेरों से लड़ाई है
यह चढ़ती रात की रौशन सवेरों से लड़ाई है
चराग़े – आदमियत की, अंधेरों से लड़ाई है
हर इक बस्ती में इंसां को सदा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
निक़ाबे-सुर्ख़ के पीछे है पीली शक्ले-ख़ाक़ानी
वही सफ़्फ़ाक नज़रें हैं, वही है चीने पेशानी
वही चंगेज़ का जज़्बा, वही ख़्वाबे- जहांबानी
अब इन ख़्वाबों को मट्टी में मिला देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
जबानाने-वतन आओ क़तार अन्दर कतार आओ
दिलों में आग, नज़रों में लिए बर्को-शरार आओ
बढ़ो, क़हरे-ख़ुदा अब बन के सूए-कारज़ार आओ
जलाले-ग़ैरते-क़ौमी दिखा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया
बहादुर हिन्द के लड़ते हैं कैसे आज दिखलाओ
रिवायाते-शुजाअत को नये कुछ बाब दे जाओ
मिटो तो दास्तानें हों, जियो तो ताज़दार आओ
लहू का, मां को फिर टीका लगा देने का वक़्त आया
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया