घूरे खाँ के घर हुई चोरी आधी रात ।
कपड़े-बर्तन ले गए छोड़े तवा-परात ॥
छोड़े तवा-परात, सुबह थाने को धाए ।
क्या-क्या चीज़ गई हैं सबके नाम लिखाए ॥
आँसू भर कर कहा – महरबानी यह कीजै ।
तवा-परात बचे हैं इनको भी लिख लीजै ॥
कोतवाल कहने लगा करके आँखें लाल ।
उसको क्यों लिखवा रहा नहीं गया जो माल ॥
नहीं गया जो माल, मियाँ मिमियाकर बोला ।
मैंने अपना दिल हुज़ूर के आगे खोला ॥
मुंशी जी का इंतजाम किस तरह करूँगा ।
तवा-परात बेचकर ‘रपट लिखाई’ दूँगा ॥