भविष्य की बात / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

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उठेगी पागल क्रान्ति-हिलोर!
काँप जायेगा विश्व विभोर।।

प्रलय की ज्वाला बनकर लोल
हँसेगा अट्टहास कर क्रोध;
करेगा तांडव-नृत्य कराल
प्रबल-सात्विक-पवित्र-परिशोध!

चलेगा परिवर्तन-तूफान
भयंकर-भीषण चारों ओर;
द्वेष की दुनिया होगी लीन

उठेगी पागल क्रान्ति-हिलोर!

चंद्रमा बरसायेगा आग
न होगा शरत्, न सरस वसंत;
ग्रीष्म होगा व्यापक सब काल
सलोनापन का होगा अंत!

फूल झर जायेंगे सुकुमार
लताओं का ऐश्वर्य-अथोर;
नष्ट होगा विलास-विश्राम

उठेगी पागल क्रान्ति-हिलोर!

गरल पीकर प्रमत्त उन्माद
रूद्र-सा नाचेगा दे ताल;
विजय को लायेगा दु्रत बाँध
अनोखा ‘नवयौवन’ विकराल!

कीर्ति का विपुल अजेय वितान
तनेगा आसमान में घोर;
दिशायें लेंगी आँखें मींच

उठेगी पागल क्रान्ति-हिलोर!
हटेगा अन्धकार का जाल
कटेगी कलुषित दुर्गुण-रात;
खुलेगा महामुक्ति का द्वार
उगेगा मंगल-मधुर-प्रभात!
सुकवि का दिग्विजयी-संगीत
छिड़ेगा कलरव-मिस चितचोर;
भ्रान्ति भागेगी तुरत अजान

उठेगी पागल क्रान्ति-हिलोर!

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