अयि जीवन की ज्योति! नाच तू
सूर्य-किरण-सी-चपल-महान!
वीणा के मृदु पागल स्वर-सी।
तारावलि-सी, लोल-लहर-सी।
अंतस्तल में नाच उठा दे
प्रलय-गान की ध्वंसक-तान!
यौवन के चल-वीचि-जाल पर,
भुज-विशाला पर चिता-ज्वाल पर;
ताल-तालपर नाच नटी-सी
छम-छम-छम पगली! अनजान!
रिक्त न हो ”ज्वाला“ की प्याली,
मिटे न रक्त-शिखा की लाली;
आग लगा दे अयि करालिनी!
भीषण-भावों में भयमान!
शक्ति-सर्पिणी को उसका दे,
सुप्त-उमंगें छेड़ जगा दे;
सखी! नाच तू, दौड़ बुलाऊँ
मैं अंतक प्रचंड-तूफ़ान!