जियादा प्यार से देखा न जाये
मुसाफिर लौट कर फिर आ न जाये
हटा लो सामने से मै की बोतल
मिरी तोबा कहीं टकरा न जाये
मना कर रास्ते में जश्ने मंजिल
हमारा रास्ता रोका न जाये
न दो दादे-जूनूँ ऐ अक्ल वालो
कहीं दीवाना भी काम आ न जाये
मुहब्बत भी अगर है जुर्म यारो
तो मैं मुजरिम मुझे बख्शा न जाये
हर इक शै से तबीयत हट रही है
कहीं उनसे भी जी घबरा न जाये
बचाओ आबरू-ए-आदमीयत
मुहब्बत को सियासत खा न जाये
बहुत कुछ है नसीमें सुबहगाही
अगर दिल की कली मुरझा न जाये
जलन कुछ कम तो हो जायेगी दिल की
वहॉं तक आह जाये या न जाये
मुसीबत भी दे राहत देने वाले
मगर इतनी कि जी घबरा न जाये
’नजीर’ इन्सान ही हैं मुहतरम भी
उन्हें भी बेखता समझा न जाये