किसी पाकीजा निगाहें मुझसे बरहम  हो गयीं
जिन्दगी की जैसे सारी बरकतें  कम हो गयीं

पाक थीं सारी तमन्नाएँ मगर मस्ती की आग
जन्नतें जितनी मिली थीं सब जहन्नुम हो गयीं

सारी दुनिया के मनाजिर  कैसे फीके पड़े गये
कुछ नजर कम हो गयी या रौनकें कम हो गयीं

उनकी नजरें उनकी जुल्फें उनकी महफिल ऐ ’नजीर’
मेरी खातिर सबकी सब इक साथ बरहम हो गयीं

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