इक तरफ गुंजान बस्ती इक तरफ सुनसान बन
देखिये जब तक जहाँ लग जाये दीवाने का मन

जो न तुझको जानता हो जा के धोका उसको दे
मैं तुझे पहचानता हॅँू जिन्दगी मुझसे न बन

चन्द आँसू काँटे, चन्द कलियाँ, चन्द फूल
हों सलीके से जहाँ मौजूद, वो भी इक चमन

आप ही अब अहल  भी हैं और ही नाअहल  भी
राहबर  कह लीजिय अपने को अब या राहजन

देर तक उठता धुआँ उठ-उठ के सर धुनता रहा
सब के सब चोैेंके अँधेरी हो चुकी जब अंजुमन

मरे उनक ेअब नहीं बनने-बिगड़ने का सवाल
कुछ अगर बनती-गिड़ती है तो माथे की शिकन

तुम जिसे समझे हो बालों की सफेदी ऐ नजीर’
मैं समझता हूँ उसे अपनी जवानी का कफन

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