बज़्म पर बार हो, इतना भी कोई सर न चढ़े
आदम दार  पे चढ़ जाये, नजर पर न चढ़े

नद्दियाँ ऐसी भी हैं जिनकों जमीं सोख गयी
कितने दरिया भी हैं ऐसे जो उतर कर न चढ़े

बारिशें लाख हों कायम रहे आला जर्फी
सारे दरिया तो चढ़ें अपना समन्दर न चढ़े

आप देवी हैं तो हर सर की हिफाजत कीजे
आप पर तन से जुदा हो के कोई सर न चढ़े

ढूँढते फिरते हैं जिन्नात परी पैकर को
चाँदनी रात में तन्हा कोई छत पर न चढ़े

जितनी मैं चाहें चढ़ा लें मगर इस शर्त के साथ
आपके सर की चढ़ी औरों के सर पर न चढ़े

मर भी जाऊँ तो न हो राजे मुहब्बत इफ्शा
मिरी तुरबत  पे तिरे नाम से चादर न चढ़े

आज इस रंग में देखा है तुझे हमने ’नजीर’
रंगे दुनिया कोई जिस रंग के ऊपर न च़ढ़े

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