जाती ग्राम वधू पति के घर!

मा से मिल, गोदी पर सिर धर,
गा गा बिटिया रोती जी भर,
जन जन का मन करुणा कातर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

भीड़ लग गई लो, स्टेशन पर,
सुन यात्री ऊँचा रोदन स्वर
झाँक रहे खिड़की से बाहर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

चिन्तातुर सब, कौन गया मर,
पहियों से दब, कट पटरी पर,
पुलिस कर रही कहीं पकड़-धर?
जाती ग्राम वधू पति के घर!

मिलती ताई से गा रोकर,
मौसी से वह आपा खोकर,
बारी बारी रो, चुप होकर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

बिदा फुआ से ले हाहाकर,
सखियों से रो धो बतिया कर,
पड़ोसिनों पर टूट, रँभा कर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

मा कहती,–रखना सँभाल घर,
मौसी,–धनि, लाना गोदी भर,
सखियाँ,–जाना हमें मत बिसर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

नहीं आसुँओं से आँचल तर,
जन बिछोह से हृदय न कातर,
रोती वह, रोने का अवसर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

लो, अब गाड़ी चल दी भर भर,
बतलाती धनि पति से हँस कर,
सुस्थिर डिब्बे के नारी नर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

रोना गाना यहाँ चलन भर,
आता उसमें उभर न अंतर,
रूढ़ि यंत्र जन जीवन परिकर,
जाती ग्राम वधू पति के घर!

रचनाकाल: जनवरी’ ४०

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *