सजा की तरह से काटी है जिन्दगी हमने
निबाह दी है मगर वजा-ए-दोस्ती हमने

जहाँ पे कोई किसी का नजर नहीं आता
रहे हयात  में देखे वो मोड़ भी हमने

खयाल आप का अच्छी तरह समझते है
लिया है जायजा बन-बन के अजनबी हमने

खुदा मुआफ करे तुमको हजरते वाइज़
बहुत सुनी है तम्हारी बुरी-भली हमने

तुम्हारा रास्ता रोके थी बन के जो काँटा
वो बात पहले ही दिल से निकाल दी हमने

वो जिन्दगी जो अमानत कभी खुदा की थी
वो जा के इक बुते काफिर को सौंप दी हमने

उसे भी सबने फरिश्ता बना के छोड़ दिया
जिस आदमी को बनाया था आदमी हमने

समझ चुका था जमाना कि मर गया है ’नजीर’
अजल के हाथ से छीनी है जिन्दगी हमने

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