मेरी अजल  को मेरा निगहबान कर दिया
दी जिन्दगी कि मौत का सामान कर दिया

जिसके करम ने खाक से इन्सान कर दिया
उस पर ये तंज, कौन सा एहसान कर दिया

बख्शा उसी को दर्द जो शयाने दर्द था
दिल भी दिया खुदा ने तो पहचान कर दिया

कर दो मुआफ मुझसे न निकलेगी अब कभी
वो बात जिसने तुमको पशेमान  कर दिया

जुल्फें कहीं, निगाह कहीं और वो कहीं
इस्सर किसने उनको परेशान कर दिया

सबसे तो एक तरह से पूछा मिज़ाजे दिल
मुझ पर अलग से कौन सा एहसान कर दिया

अब जिन्दगी वफा न करे तो मिरा नसीब
तुमने तो मरेर जीने का सामान कर दिया

होकर तुलूए रात  मिरे आफताब  ने
नावक़्त चाक शब का गिरेबान कर दिया

अपनी जबाँ से तुमने सुनाकर मिरी गज़ल
मेरे हर एक शे’र को दीवान कर दिया

सहरा से कम न थी ये जमीने गज़ल मगर
जिक्रे परीरूखाँ ने परिस्तान कर दिया

काशी के एक बुत ने दिखाकर झलक ’नजीर’
ताज़ा जनाब शेख़ का ईमान कर दिया

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