गुलबदन, गुल पैरहन  ग़ुंचा  दहन  याद आ गया
जिस चमन में भी गये अपना चमन याद आ गया

धूप खायी गेसुए साया फिगन  याद आ गया
जब हुई तकलीफ गुरबत में वतन याद आ गया

गिर गयी मेरी निगाहों से बहारे रंग-रंग
एक ऐसा हुस्न सादा पैरहन याद आ गया

सामने से कोई गुरजा आज इस अंदाज से
जिन्दगी को अपना खोया बाँकपन याद आ गया

आईने में अपने बालों की सफेदी देख कर
याद करता था जवानी को कफन याद आ गया

शहर में भी र हके दीवाना सँभल जाता मगर
शहरियों ने वो सितम ढाये कि बन याद आ गया

एक परदेशी से कर ली आज तुमने दोस्ती
क्या करोगे कल अगर उसको वतन याद आ गया

चौकड़ी भरते नहीं देखा कई दिन से ’नजीर’
हिरनियों को क्या कोई जख्मी हिरन याद आ गया

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