इन मस्त हवाओं का ये बरसात का मौसम
तन्हाई में बेयार गुजर जाए, सितम है ।

शग़ले-मय-ओ-महबूब का रंगीन ज़माना
कालिज की खुराफ़ात में कट जाए, सितम है ।

आग़ाज़े-जवानी के गुनाहों का तक़द्दुस
और दफ़्तरे-बेमाना मे दब जाए, सितम है ।

जिस पैकरे-लज़्ज़त से इबारत है मसर्रत
वो हमदमे-देरीना बिछुड़ जाए, सितम है ।

नौ ख़ास्ता महबूब का मुँह चूमने वाले
इस रुत में ये बे बाल-ओ-परी, हाय सितम है ।

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