इन्तेसाब 

हमको बे-मायगी ज़ब्त दिखाना ही पड़ा
दिल की बातों को तेरे सामने लाना ही पड़ा ।

मैं जो ख़लवत में भी डरता था सुनाने के लिए
सरे-बाज़ार वही गीत सुनाना ही पड़ा ।

खींच लाया तुझे परदे से मेरा ज़ौक़-ए-नियाज़
मेरे पर्दे में तुझे जल्वा दिखाना ही पड़ा ।

थरथराते हुए हाथों से धड़कते दिल से
तेरे रुख़ से तेरे आँचल को हटाना ही पड़ा ।

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