फिर बुला भेजा है फूलों ने गुलिस्तानों से
तुम भी आ जाओ के बातें करें पैमानों से
रुत पलट आएगी, इक आपके आ जाने से
कितने अफ़साने हैं, सुनने हैं जो दीवानों से
तोफ़-ए-बर्गे गुलो बादे बहाराँ लेकर
काफ़िले-इश्क़ के निकले हैं बियाबानों से
बदला-बदला सा नज़र आता है दुनिया का चलन
आपके मिलने से, हम जैसे परेशानों से
हम तो खिलते हुए गुन्चों का तबस्सुम हैं नदीम
मुस्कुराते हुए टकराते हैं तूफ़ानों से