हदि-ए-अश्के ख़ूँ ले के आया हूँ मैं
ख़ूँ बहाए वफ़ा दिल की सौग़ात क्या ।
जेब व दामाँ की उड़ने लगीं धज्जियाँ
जुर्म क्या, जुर्मे ग़म की मुकाफ़ात क्या ।
इश्क़ की मशअलें, इश्क़ के वलवले
हमसफ़र, सुबह क्या, शाम क्या, रात क्या ।
चश्मे अहले हवस मुस्कुराती है गर
चश्मे अहले हवस मुस्कुराती रहे ।
इब्ने आदम को सूली चढ़ाते रहो
ज़िन्दगानी सरेदार गाती रहे ।
यादे याराँ में इक जामे ग़म और दो
रात की तीरगी सोज़ गाती रहे ।
दिल बढ़ाती रहे हाथ की नर्मियाँ
प्यार की चाँदनी जगमगाती रहे ।