अमान मरहूम के नाम
इश्क़ के शोलों को भड़काओ के कुछ रात कटे
दिल के अंगारे को दहकाओ के कुछ रात कटे ।
हिज्र में मिलने शब-ए-माह के ग़म आए हैं
चारसाज़ों को भी बुलवाओ के कुछ रात कटे ।
कोई जलता ही नहीं, कोई पिघलता ही नहीं
मोम बन जाओ, पिघल जाओ, के कुछ रात कटे ।
चश्मे-रुख़सार के अज़कार को जारी रखो
प्यार के नग़मे को दोहराओ के कुछ रात कटे ।
आज हो जाने दो हरएक को बदमस्त-ओ-ख़राब
आज एक-एक को पिलवाओ के कुछ रात कटे ।
कोहे ग़म और गिराँ और गिराँ और गिराँ
ग़मज़दो तीशे को चमकाओ के कुछ रात कटे ।