कुछ फूल सरे सहने चमन खिल तो रहे हैं
इक नूर सरे तूर नज़र आ तो रहा है ।
सदियों से सदफ़ बन्द गुहरबन्द नज़रबन्द
वो जानेसदफ़ जाने गुहर आ तो रहा है ।
लब सर्द, नज़र सर्द,बदन सर्द है, दिल सर्द
वो जाने मसीहा नफ़साँ आ तो रहा है ।
आँखों में हया लब पे हँसी आ तो रही है
आग़ोश-ए-सहर में कोई शर्मा तो रहा है ।