अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
कहो नसीमे सहर से, ठहर-ठहर के चले ।
मिले तो बिछड़े हुए मयकदे के दर पे मिले
न आज चाँद ही डूबे, न आज रात ढले ।
अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
कहो नसीमे सहर से, ठहर-ठहर के चले ।
मिले तो बिछड़े हुए मयकदे के दर पे मिले
न आज चाँद ही डूबे, न आज रात ढले ।