अश्रु मेरे माँगने जब
नींद में वह पास आया!

अश्रु मेरे माँगने जब
नींद में वह पास आया!
स्वप्न सा हँस पास आया!

हो गया दिव की हँसी से
शून्य में सुरचाप अंकित;
रश्मि-रोमों में हुआ
निस्पन्द तम भी सिहर पुलकित;

अनुसरण करता अमा का
चाँदनी का हास आया!

वेदना का अग्निकण जब
मोम से उर में गया बस,
मृत्यु-अंजलि में दिया भर
विश्व ने जीवन-सुधा-रस!

माँगने पतझार से
हिम-बिन्दु तब मधुमास आया!

अमर सुरभित साँस देकर,
मिट गये कोमल कुसुम झर;
रविकरों में जल हुए फिर,
जलद में साकार सीकर;

अंक में तब नाश को
लेने अनन्त विकास आया!

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *