यदि जीवन संग्राम
नाम जीवन का,
अमृत और विष ही परिणाम
उदधि मंथन का
सृजन प्रथा तब प्रगति विकास नहीं है
बुद्धि और परिणति ही कथा सही है!
नित्य पूर्ण यह विश्व चिरंतन
पूर्ण चराचर, मानव तन मन,
अंतर्वाह्य पूर्ण चिर पावन!
केवल जीव वृद्धि पाते हैं,
वे परिणत होते जाते हैं,
जीवन क्षण, जीवन के युग,
जीवन की स्थितियाँ
परिवर्तित परिवर्धित होकर
भव इतिहास कहाते हैं!
छाया प्रकाश दोनों मिलकर
जीवन को पूर्ण बनाते हैं!
यदि ऐसा संग्राम
नाम जीवन का,
अमृत और विष ही परिणाम
उदधि मंथन का
तब परिणति ही है इतिहास सृजन का,
क्रम विकास अध्यास मात्र रे मन का!