बड़ा बे-बहा है दफीना ‘रतन’ का
की हर शेर है इक नगीना ‘रतन’ का
बहुत कम मयस्सर हुआ शायरों को
सुख़न में है जैसा क़रीना ‘रतन’ का
इधर ‘शहजहांपुर’ है इन का मक़्का
‘नकोदर’ उधर है मदीना ‘रतन’ का
रवानी में ऊनी है यक्ता-ए-दौरां
तबीयत ‘रतन’ की सफ़ीना ‘रतन’ का
परखने का जिस को सलीक़ा नहीं है
खरीदेगा क्या वो खज़ीना ‘रतन’ का
हैं ये रिंदे-मशरब बड़े ज़र्फ़ वाले
सलीके का पानी है पीना ‘रतन’ का
‘मुनव्वर’ है फानूस अगर ज़ात इन की
है फर्शे-नज़र आबगीना ‘रतन’ का।