आज इस अंदाज़ से भड़की है मेरे दिल में आग
देखता हूँ हस्तिए-फ़ानी की हर मंज़िल में आग

ज़ाहिरी सूरत बसा औक़ात देती है फ़रेब
आंख में पानी जिसे समझा वही है दिल में आग

चांदनी रातों में आतिश-ज़ेर-पा रहता हूँ मैं
मेरी आँखों से कोई देखे महे-कामिल में आग

दिल तपां है, सीना सोजां है ,जिगर है शोलाबार
लग रही है आज मेरे घर की हर मंज़िल में आग

आंख का पानी बुझा सकता है इस को किस तरह
सर्द हीने की नहीं जो लग रही है दिल में आग

चार ही तिनके चुने थे आशियाने के लिए
देखते ही उन को भड़की बिजलियों के दिल में आग

चश्मे-दरयाबार का ही इंतिहा हो जायेगा
फिर लगा दी है किसी के ग़म ने मेरे दिल में आग

एक ही घर में अदावत का ये मंज़र देखिये
आंख में पानी भरा है शोलाज़न है दिल में आग

ऐ ‘रतन’ मेरे बयाने-सोज़ की तासीर देख
मुश्तइल होने लगी अहबाब के महफ़िल में आग।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *