हुस्न से दिल लगा के देख लिया
इश्क़ को आज़मा के देख लिया

कोई साथी नहीं मुसीबत में
मौत को भी बुला के देख लिया

मेरा जीना भी कोई जीना है
जिस ने चाहा मिटा के देख लिया

दहर बेगानए-महब्बत है
सब को अपना बना के देख लिया

यक-ब-यक तिलमिला उठा है दिल
किस ने पर्दा उठा के देख लिया

बढ़ गई और बे रुखी उन की
क़िस्सए-ग़म सुना के देख लिया

मुतमइन ऐ ‘रतन’ जबीं न हुई
हर जगह सर झुका के देख़ लिया।

By shayar

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