दिल बिक चुका है जब से किसी दिलरुबा के साथ
उठने लगे हैं प्यार से मुझ पर क़ज़ा के साथ
दोनों ने थाम रक्खी है किस्मत की बाग डोर
कुछ आदमी के हाथ है कुछ है ख़ुदा के हाथ
कुदरत की बारगाह का इंसाफ़ देखिये
बन्दे के हाथ कुछ नहीं सब कुछ ख़ुदा के हाथ
तेरी निगाह में है मिरे दिल की आरज़ू
फिर तुझ से मांगता फिरूँ मैं क्या उठा के हाथ
वो और होंगे जिन की तमन्ना निकल गई
हम तो उठाये बैठे हैं अब तक दुआ के हाथ
देखेंगे हम भी हौसला उस पुरग़ुरूर का
पैग़ाम हम भी भेजेंगे आहे-रसा के साथ
जीते जी एक बार न मक़बूल हो सकी
क्यों टूट कर न रह गये ऐसी दुआ के हाथ
म्हरुमियों नसीब में लिखी हों जब ‘रतन’
बे फायदा उठाये कोई क्यों दुआ के हाथ।