तय हुई उन से मुलाक़ात की बात
रख ली कीमत ने मेरी बात की बात
तेरे पहलू में जो गुज़री ऐ दोस्त
आज तक याद है उस रात की बात
जिस का आग़ाज़ न कोई अंजाम
कौन कह सकता है उस ज़ात की बात
आंख मिलते ही क़ियामत टूटी
पूछते क्या हो शुरुआत की बात
कुछ नहीं दोखज़-ओ-जन्नत वाइज़
ये है तेरे ही ख़यालात की बात
बाज़ीए-इश्क़ न कोई जीता
फ़त्ह पाती है यहां मात की बात
मेरे अश्क़ों की झड़ी तो देखो
क्यों सुनाओ मुझे बरसात की बात
जीत से भी जो बढ़ कर खुश-कुन
सर-ब-सर वो है मिरी मात की बात
बात से बात निकलती है ‘रतन’
क्या करे कोई तिरी बात की बात।