दिल तफ्ता जिगर सोख्ता तन ख़ाक बसर है
ले दे के यही नख्ले-महब्बत का समर है

पत्थर के जिगर लोहे के दिल चीरे हैं इस ने
ऐ सिहर नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र है

आसार ये कहते हैं कि कुछ हो के रहेगा
जलवा है उधर तेरा इधर मेरी नज़र है

ऐ हुस्न की मस्ती में मुझे भूलने वाले
किस हाल में जीता हूँ तुझे ये भी ख़बर है

अब ख़ाक में मिल जाऊंगा लेकिन न उठूंगा
जिस राह में बैठा हूँ तिरी राह-गुज़र है

दुनिया ने निगाहों से गिराया है तो फिर क्या
सद शुक्र कि ना-चीज़ पे तेरी तो नज़र है

बुन्याद नशेमन की ‘रतन’ हम ने तक रख ली
आवाज़ दो बिजली को वो इस वक़्त किधर है।

By shayar

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