अरमान भरे दिल में उतर कर देखो
उम्मीद की महफ़िल में उतर कर देखो।
ऐ चाँद की धरती में उतरने वालो
इर्फ़ान की मंज़िल में उतर कर देखो।
पंडित का धरम शैख़ का ईमान नहीं
क़ालब तो हैं दो इन में मगर जान नहीं।
रहजन है कोई और है कोई क़ातिल
इंसान हक़ीक़त में अब इंसान नहीं।
जो कुफ़्र को शरमाये वो ईमान है तू
हर ऐब पे जान-ओ-दिल से क़ुर्बान है तू
किरदार से हैवान नज़र आता है
फिर कौन ये मान ले कि इंसान है तू।
ज़ालिम है सितम केश है खूंखार है तू
एहसान-फरामोश है अय्यार है तू
इस पर भी तअज्जुब है मुझे ऐ इंसां
ऐबों पे सिताइश का तलबगार है तू।