निर्झर
तुम झरो हे निर्झर प्राणों के स्वर झरो हे निर्झर! चिर अगोचर नील शिखर मौन…
Read Moreहे करुणाकर, करुणा सागर! क्यो इतनी दुर्बलताओं का दीप शून्य गृह मानव अंतर! दैन्य पराभव…
Read Moreआवें प्रभु के द्वार! जो जीवन में परितापित हैं, हतभागे, हताश, शापित हैं, काम क्रोध…
Read Moreविभा, विभा जगत ज्योति तमस द्विभा! झरता तम का बादल इंद्रधनुष रँग में ढल ओझल…
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