सोमपायी
चिर रमणीय बसंत ग्रीष्म वर्षा ऋतु सुखमय स्निग्ध शरद हेमंत शिशिर रमणीय असंशय! मधु केंद्रों…
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Read Moreआज देवियों को करता मन भूरि रे नमन चिन्मयि सृजन शक्तियाँ जो करतीं जगत सृजन!…
Read Moreइन्द्र सतत सत्पथ पर देवें मर्त्य हम चरण दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण!…
Read Moreवेद ऋचाएँ अक्षर परम व्योम में जीवित निखिल देवगण चिर अनादि से जिसमें निवसित! जिसे…
Read Moreइन्द्रदेव तुम स्वभू सत्य सर्वज्ञ दिव्य मन स्वर्ग ज्योति चित् शक्ति मर्त्य में लाते अनुक्षण!…
Read Moreदाँई बाँई ओर, सामने पीछे निश्चित नहीं सूझता कुछ भी बहिरंतर तमसावृत! हे आदित्यो मेरा…
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