मिल जाओ गल
देख रहा हूँ, यह कैसी कमनीयता छाया-सी कुसुमित कानन में छा रही अरे, तुम्हारा ही…
Read Moreदेख रहा हूँ, यह कैसी कमनीयता छाया-सी कुसुमित कानन में छा रही अरे, तुम्हारा ही…
Read Moreथोड़ा भी हँसते देखा ज्योंही मुझे त्योही शीध्र रुलाने को उत्सुक हुए क्यों ईर्ष्या है…
Read Moreक्यों जीवन-धन ! ऐसा ही है न्याय तुम्हारा क्या सर्वत्र लिखते हुए लेखनी हिलती, कँमता…
Read Moreप्रिय मनोरथ व्यक्त करें कहो जगत्-नीरवता कहती ‘नहीं’ गगन में ग्रह गोलक, तारका सब किये…
Read Moreहाँ, सारथे ! रथ रोक दो, विश्राम दो कुछ अश्व को यह कुंज था आनन्द-दायक,…
Read Moreप्रियजन दृग-सीमा से जभी दूर होते ये नयन-वियोगी रक्त के अश्रु रोते सहचर-सुखक्रीड़ा नेत्र के…
Read Moreव्याप्त है क्या स्वच्छ सुषमा-सी उषा भूलोक में स्वर्णमय शुभ दृश्य दिखलाता नवल आलोक में…
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