जीवन का फल, जीवन का फल!
जीवन का फल, जीवन का फल! यह चिर यौवन-श्री से मांसल! इसके रस में आनन्द…
Read Moreजीवन का फल, जीवन का फल! यह चिर यौवन-श्री से मांसल! इसके रस में आनन्द…
Read Moreतारों का नभ! तारों का नभ! सुन्दर, समृद्ध आदर्श सृष्टि! जग के अनादि पथ-दर्शक वे,…
Read Moreवे डूब गए–सब डूब गए दुर्दम, उदग्रशिर अद्रि-शिखर! स्वप्नस्थ हुए स्वर्णातप में लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब…
Read Moreवे चहक रहीं कुंजों में चंचल सुंदर चिड़ियाँ, उर का सुख बरस रहा स्वर-स्वर पर!…
Read Moreविद्रुम औ’ मरकत की छाया, सोने-चाँदी का सूर्यातप; हिम-परिमल की रेशमी वायु, शत-रत्न-छाय, खग-चित्रित नभ!…
Read Moreझर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!– केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से…
Read Moreचंचल पग दीप-शिखा-से धर गृह,मग, वन में आया वसन्त! सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौन्दर्य-शिखाओं में…
Read Moreगा, कोकिल, बरसा पावक-कण! नष्ट-भ्रष्ट हो जीर्ण-पुरातन, ध्वंस-भ्रंस जग के जड़ बन्धन! पावक-पग धर आवे…
Read Moreद्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र! हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण! हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत, तुम वीत-राग, जड़,…
Read More