मंजरित आम्र-वन-छाया में
मंजरित आम्र-वन-छाया में हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित, नीचे चन्द्रातप…
Read Moreमंजरित आम्र-वन-छाया में हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित, नीचे चन्द्रातप…
Read Moreवह विजन चाँदनी की घाटी छाई मृदु वन-तरु-गन्ध जहाँ, नीबू-आड़ू के मुकुलों के मद से…
Read Moreखो गई स्वर्ग की स्वर्ण-किरण छू जग-जीवन का अन्धकार, मानस के सूने-से तम को दिशि-पल…
Read Moreसुन्दरता का आलोक-श्रोत है फूट पड़ा मेरे मन में, जिससे नव जीवन का प्रभात होगा…
Read Moreए मिट्टी के ढेले ऐ मिट्टी के ढेले अनजान! तू जड़ अथवा चेतना-प्राण? क्या जड़ता-चेतनता…
Read Moreजो दीन-हीन, पीड़ित, निर्बल, मैं हूँ उनका जीवन संबल! जो मोह-छिन्न, जग से विभक्त, वे…
Read Moreजग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य-पूर्ण औ सत्य-प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव-हित…
Read Moreबाँसों का झुरमुट– संध्या का झुटपुट हैं चहक रहीं चिड़ियाँ टी-वी-टी–टुट-टुट! वे ढाल ढाल कर…
Read Moreबढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर! सोचो वृथा न भव-भय-कातर! ज्वाला के विश्वास के चरण, जीवन मरण…
Read Moreगर्जन कर मानव-केशरि! मर्म-स्पृह गर्जन,– जग जावे जग में फिर से सोया मानवपन! काँप उठे…
Read More