गणपति उत्सव
कितना रूप राग रंग कुसुमित जीवन उमंग! अर्ध्य सभ्य भी जग में मिलती है प्रति…
Read Moreकितना रूप राग रंग कुसुमित जीवन उमंग! अर्ध्य सभ्य भी जग में मिलती है प्रति…
Read More‘तुम निर्बल हो, सबसे निर्बल!’ बोला माधव! ‘मैं निर्बल हूँ औ’ युग के निर्बल का…
Read More‘अच्छा, अच्छा,’ बोला श्रीधर हाथ जोड़ कर, हो मर्माहत, ‘तुम शिक्षित, मैं मूर्ख ही सही,…
Read Moreस्वर्ण बालुका किसने बरसा दी रे जगती के मरुथल मे, सिकता पर स्वर्णांकित कर स्वर्गिक…
Read Moreमुझे असत् से ले जाओ हे सत्य ओर मुझे तमस से उठा, दिखाओ ज्योति छोर,…
Read Moreछाया? वह लेटी है तरु-छाया में सन्ध्या-विहार को आया मैं। मृदु बाँह मोड़, उपधान किए,…
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