अंतर्लोक
यह वह नव लोक जहाँ भरा रे अशोक सूक्ष्म चिदालोक! शोभा के नव पल्लव झरता…
Read Moreबज पायल छम छम छम! उर की कंपन में निर्मम बज पायल छम छम छम!…
Read Moreएक धार बहता जग जीवन एक धार बहता मेरा मन! आर पार कुछ नहीं कहीं…
Read Moreआम्र मंजरित, मधुप गुंजरित गंध समीरण मंद संचरित! प्राणों की पिक बोल उठी फिर अंतर…
Read Moreस्वप्न देही हो प्रिये हो तुम, देह तनिमा अश्रु धोई! रूप की लौ सी सुनहली…
Read Moreबाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में एक मधुर जीवित आभा सी लिपट…
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