दिल्ली और मास्को
जय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी! रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी!…
Read Moreजय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी! रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी!…
Read Moreधुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा। कोई मुझे…
Read Moreयुद्ध की इति हो गई; रण-भू श्रमित, सुनसान; गिरिशिखर पर थम गया है डूबता दिनमान–…
Read More‘जय हो’, खोलो अजिर-द्वार मेरे अतीत ओ अभिमानी! बाहर खड़ी लिये नीराजन कब से भावों…
Read Moreछिप जाऊँ कहाँ तुम्हें लेकर? इस विष का क्या उपचार करूँ? प्यारे स्वदेश! खाली आऊँ?…
Read Moreसारी दुनिया उजड़ चुकी है, गुजर चुका है मेला; ऊपर है बीमार सूर्य नीचे मैं…
Read Moreजा रही देवता से मिलने? तो इतनी कृपा किये जाओ। अपनी फूलों की डाली में…
Read Moreरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!…
Read Moreबटोही, धीरे-धीरे गा। बोल रही जो आग उबल तेरे दर्दीले सुर में, कुछ वैसी ही…
Read More