दिल्ली (कविता)
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से…
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Read Moreसदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,…
Read Moreवैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सम्भालो, चट्टानों की छाती से दूध निकालो, है रुकी जहाँ…
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Read Moreचूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो, लाया था जो बड़े सेठ…
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