नव वसंत
पूर्णिमा की रात्रि सुखमा स्वच्छ सरसाती रही इन्दु की किरणें सुधा की धार बरसाती रहीं…
Read Moreपूर्णिमा की रात्रि सुखमा स्वच्छ सरसाती रही इन्दु की किरणें सुधा की धार बरसाती रहीं…
Read Moreमनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही, अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में नील गगन-सा शान्त हृदय भी…
Read Moreक्लान्त हुआ सब अंग शिथिल क्यों वेष है मुख पर श्रम-सीकर का भी उन्मेष है…
Read Moreकरूणा-निधे, यह करूण क्रन्दन भी ज़रा सुन लीजिये कुछ भी दया हो चित्त में तो…
Read Moreजयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है जयति महासंगीत ! विश्व-वीणा जिसकी ध्वनि…
Read Moreज़ाए है नक़द-ए-हस्ती बर्बाद-ए-गुफ़्तगू हूँ ढलकी हुई सुराही छलका हुआ सुबू हूँ किस की तलाश…
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