ठहरो
वेेगपूर्ण है अश्व तुम्हारा पथ में कैसे कहाँ जा रहे मित्र ! प्रफुल्लित प्रमुदित जैसे…
Read Moreवेेगपूर्ण है अश्व तुम्हारा पथ में कैसे कहाँ जा रहे मित्र ! प्रफुल्लित प्रमुदित जैसे…
Read Moreचन्द्रिका दिखला रही है क्या अनूपम सी छटा खिल रही हैं कुसुम की कलियाँ सुगन्धो…
Read Moreदिनकर अपनी किरण-स्वर्ण से रंजित करके पहुंचे प्रमुदित हुए प्रतीची पास सँवर के प्रिय-संगम से…
Read Moreशीघ्र आ जाओ जलद ! स्वागत तुम्हारा हम करें ग्रीष्म से सन्तप्त मन के ताप…
Read Moreविमल व्योम में देव-दिवाकर अग्नि-चक्र से फिरते हैं किरण नही, ये पावक के कण जगती-तल…
Read Moreसुनो प्राण-प्रिय, हृदय-वेदना विकल हुई क्या कहती है तव दुःसह यह विरह रात-दिन जैसे सुख…
Read More