पतित पावन
पतित हो जन्म से, या कर्म ही से क्यों नहीं होवे पिता सब का वही…
Read Moreसकल वेदना विस्मृत होती स्मरण तुम्हारा जब होता विश्वबोध हो जाता है जिससे न मनुष्य…
Read Moreअहो, यही कृत्रिम क्रीड़ासर-बीच कुमुदिनी खिलती थी हरे लता-कुंजो की छाया जिसको शीतल मिलती थी…
Read More