कब?
शून्य हृदय में प्रेम-जलद-माला कब फिर घिर आवेगी? वर्षा इन आँखों से होगी, कब हरियाली…
Read Moreकौन, प्रकृति के करुण काव्य-सा, वृक्ष-पत्र की मधु छाया में। लिखा हुआ-सा अचल पड़ा हैं,…
Read Moreनव तमाल श्यामल नीरद माला भली श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी, अब उसके…
Read Moreविश्व के नीरव निर्जन में। जब करता हूँ बेकल, चंचल, मानस को कुछ शान्त, होती…
Read Moreकंस-हृदय की दुश्चिन्ता-सा जगत् में अन्धकार है व्याप्त, घोर वन है उठा भीग रहा है…
Read Moreमधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी मनोहर झरना। कठिन…
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