चित्राधार
कानन-कुसुम – पुन्य औ पाप न जान्यो जात। सब तेरे ही काज करत है और…
Read More१. अरुण करुण बिम्ब ! वह निर्धूम भस्म रहित ज्वलन पिंड! विकल विवर्तनों से विरल…
Read More“ले लो यह शस्त्र है गौरव ग्रहण करने का रहा कर मैं — अब तो…
Read Moreअंतरिक्ष में अभी सो रही है उषा मधुबाला , अरे खुली भी अभी नहीं तो…
Read Moreमधुर माधवी संध्या मे जब रागारुण रवि होता अस्त, विरल मृदल दलवाली डालों में उलझा…
Read Moreओ री मानस की गहराइ! तू सुप्त , शांत कितनी शीतल- निर्वात मेघ ज्यों पूरित…
Read Moreनिधरक तूने ठुकराया तब मेरी टूटी मधु प्याली को, उसके सूखे अधर मांगते तेरे चरणों…
Read Moreशशि सी वह सुंदर रूप विभा छाहे न मुझे दिखलाना. उसकी निर्मल शीतल छाया हिमकन…
Read Moreअरे! आ गई है भूली- सी- यह मधु ऋतु दो दिन को, छोटी सी कुटिया…
Read Moreमुझे प्यार करने वालों को? मेरी आँखों में आकर फिर आँसू बन ढरने वालों को?…
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