अवकाश वाली सभ्यता
मैं रात के अँधेरे में सिताओं की ओर देखता हूँ जिन की रोशनी भविष्य की…
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Read More(1) आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ? मरभुखे ! इसे घबराहट…
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Read Moreलोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल, नम होगी यह मिट्टी…
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Read More== हिमालय == मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरुष के पुन्जीभूत ज्वाल!…
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Read Moreराजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी राजा के मुख…
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