बादल
सुरपति के हम हैं अनुचर , जगत्प्राण के भी सहचर ; मेघदूत की सजल कल्पना…
Read Moreअहे विश्व! ऐ विश्व-व्यथित-मन! किधर बह रहा है यह जीवन? यह लघु-पोत, पात, तृण, रज-कण,…
Read Moreअरे! ये पल्लव-बाल! सजा सुमनों के सौरभ-हार गूँथते वे उपहार; अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल,…
Read More(१) अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही तांडव नर्तन विश्व का करुण विवर्तन! तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,…
Read Moreस्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान , विश्व के पलकों पर…
Read Moreझर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!– केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से…
Read Moreउस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय…
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